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कॉर्पोरेट हाउसेस पर 1284 करोड़ रुपये बकाया, कैग ने सरकार को फटकारा

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भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने सरकार को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली एमएमआरडीए से बकाया रकम की वसूली न करने पर फटकार लगाई है। मामला है बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में पट्टे पर दी गई तीन प्रमुख जमीनों की लीज की रकम का भुगतान न करने का। सरकार पर इस रकम की वसूली न कर पाने और इस संदर्भ में ठोस कदम न उठाने का आरोप लगाया गया है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार अतिरिक्त लीज प्रीमियम के रूप में इन कंपनियों पर 1,284 करोड़ रुपये बकाया है।

 

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में कैग ने महाराष्ट्र सरकार और इसकी एजेंसियों मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) की खिंचाई की है। इसके अलावा झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण को भी कॉर्पोरेट हाउसेज और प्रमुख डेवलपर्स को शहर की प्रमुख जमीनों का आवंटन करने के लिए संबंधितों से अनुचित लाभ उठाने पर फटकार लगाई है।

 

सीएजी रिपोर्ट को राज्य विधानसभा के पटल पर रखा गया। इस रिपोर्ट के अनुसार, लाभार्थी समूहों में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल), स्टारलाईट सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड (एसएसपीएल) और हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) समेत कई अन्य कॉर्पोरेट हाउसेस के नाम भी शामिल हैं। इन कॉर्पोरेट हाउसेस के साथ ही सीएजी ने पट्टे पर दी गई जमीनों की देय राशि की वसूली और अतिरिक्त प्रीमियम की वसूली न कर पाने पर सरकार की भी खिंचाई की है। पट्टे पर दी गई तीनों भूमि के किराए और अतिरिक्त प्रीमियम एवं लगाए गए दंड की वसूली के लिए अपेक्षित कदम उठाने में नाकाम रहने के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली एमएमआरडीए को फटकार है। बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स के जी ब्लॉक के तीन भूखंडों में से दो भूखंड आरआईएल को और एक भूखंड एसएसपीएल को आवंटित किए गए हैं। आबंटियों से अनुचित लाभ हासिल करने के लिए कैग ने सवाल उठाए हैं।

 

यह पहली बार नहीं है कि कैग ने सरकार और एमएमआरडीए को कटघरे में खड़ा किया हो। इससे पहले भी कैग ने आरआईएल के दो प्लॉट्स के प्रीमियम और दंड की वसूली में लापरवाही बरतने पर भी सवाल उठाया था। अगस्त 2013 में, तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी की सत्ता के दौरान भी कैग ने इसी तरह की कड़ी आपत्ति जताई थी।

 

सीएजी के मुताबिक, एमएमआरडीए के अधिकार में बीकेसी के जी ब्लॉक में 10,183 वर्ग मीटर भूखंड है। इस भूखंड को दिसंबर 2007 में आरआईएल को एक बहु मंजिला पार्किंग स्थल के साथ ही 30,550 वर्गमीटर का बिल्ट अप क्षेत्र का आवंटन किया गया था। इस भूखंड को 80 साल के पट्टे पर व्यावसायिक परिसर का निर्माण करने के लिए रिलायंस को आवंटित किया गया था।

 

पट्टे में शामिल की गई शर्तों व अन्य नियमों के अनुसार, भूखंड आवंटन के चार साल के भीतर निर्माण कार्य पूरा करने में विफल रहने पर आरआईएल को आवंटित भूखंड के 10 फीसदी के बराबर अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान करना था। मूल पट्टा प्रीमियम के तहत यह रकम 918 करोड़ रुपए आंकी गई थी। निर्माण पूरा न होने की स्थिति में रिलायंस को 10 फीसदी के बराबर एक अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान किया जाना था। तीन साल से अधिक विलंब होने अतिरिक्त पट्टा प्रीमियम दर को बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिए जाने का भी प्रावधान किया गया था। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पट्टा समझौता के तहत सरकार और एमएमआरडीए की ओर से इस शर्तों की अनदेखी की गई है। रिलायंस को लाभ पहुंचाने के लिए शर्त में शामिल की गई प्रीमियम की दर से शुल्क का भुगतान करने में असफल रहने के बाद भी रिलायंस पर 14 प्रतिशत का ही ब्याज और जुर्माना लगाया जा रहा है।

 

कैग ने यह भी कहा है कि रिलायंस पर एमएमआरडीए ने केवल 14 फीसदी का ही ब्याज व जुर्माना लगाया है, जबकि अन्य आवंटियों से एमएमआरडीए प्रशासन नियमित रूप से शर्त में शामिल की गई अतिरिक्त प्रीमियम को वसूल कर रहा था। सीएजी ने कहा है कि आरआईएल के मामले में जुलाई 2017 तक एमएमआरडीए की ओर से तीन साल से अधिक का विलंब किए जाने के बावजूद आरआईएल से अतिरिक्त प्रीमियम का वसूली नहीं हो पाई है।

 

हालांकि एमएमआरडीए ने अगस्त 2014 में रिलायंस इंडस्ट्रीज को एक नोटिस जारी किया था, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि अगर कर्ज का भुगतान नहीं किया गया तो निर्माण के लिए जारी किए गए प्रारंभिक प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया जाएगा। एमएमआरडीए ने यह भी चेतावनी दी थी कि जमीन को फिर से अधिकार में ले लिया जाएगा और भूमि राजस्व के बकाए के रूप में कंपनी से बकाए रकम की वसूली की जाएगी।

 

सितंबर 2014 में सरकारी एजेंसी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के लेवी लगाए जाने के खिलाफ दाखिल किए गए तर्कों को खारिज कर दिया था। कैग ने अपनी जांच में यह पाया है कि सरकारी एजेंसी ने रिलायंस की ओर से बकाया राशि का भुगतान न किए जाने के बावजूद 29 मई 2015 और 21 दिसंबर 2015 को निर्माण कार्य को आंशिक रूप से व्यवसाय प्रमाण पत्र जारी किया है।

 

एमएमआरडीए ने तर्क दिया है की बकाया राशि का भुगतान किए जाने के बाद ही निर्माण कार्य की पूर्ण ओसी दी जाएगी। लेखा परीक्षण में सीएजी ने इसे अनुचित लाभ देने जाने का आरोप लगाया है। कैग ने एमएमआरडीए को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि सरकारी एजेंसी मार्च 2012 से ही बीकेसी के जी-ब्लॉक में रिलायंस इंडस्ट्रीज से आवंटित भूखंड के अतिरिक्त निर्माण क्षेत्र और लीज प्रीमियम वसूल करने में विफल रही है। एसएसपीएल को भी एक ही ब्लॉक में एक समान भूमि का आवंटन किया गया है।

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