पिछले कुछ दिनो में दलितों के साथ हुए भेदभाव और उसके खिलाफ हुई हिंसात्मक घटनाओं के विरुद्ध देश में 3000 साल पुरानी परंपरा को पनर्स्थापित किया गया है। हैदराबाद के एक मंदिर में पुजारी ने फिर से परंपरा को स्थापित करते हुए एक दलित युवक को कंधे पर बैठाकर मंदिर में प्रवेश कराया। पुजारी ने मंदिर के अंदर पहुंचकर इस दलित युवक आदित्य पारासरी को गले भी लगाया।
हैदराबाद के चिल्कुर बालाजी मंदिर के पुजारी सीएस रंगराजन ने बताया कि उनके ऐसा करने से हालिया दिनों में दलितों के साथ हुए भेदभाव और उनके खिलाफ हुईं हिंसात्मक घटनाओं के विरुद्ध देशभर में मजबूत संदेश जाएगा। उन्होंने बताया कि यह परंपरा लगभग 3,000 साल पुरानी है, और तमिलनाडु में पुजारी द्वारा दलित युवक को कंधों पर बिठाकर मंदिर ले जाने की इस प्रथा को ‘मुनि वाहन सेवा’ के नाम से जाना जाता है।
पुजारी सीएस रंगराजन ने ‘डेक्कन क्रॉनिकल’ से बात करते हुए जानकारी दी कि यह 2,700 साल पुरानी परम्परा को दोबारा शुरू करना है, जिसका उद्देश्य सनातन धर्म की महानता को पुनर्स्थापित करने और समाज के सभी वर्ग में समानता का संदेश प्रसारित करना है। उन्होंने कहा कि इस पहल के पीछे का मकसद दलितों के साथ हो रही उत्पीड़न की घटनाओं को रोकना और विभिन्न वर्गों में बंधुत्व की भावना जाग्रत करना है।
चेगोंडी चंद्रशेखर नामक शख्स ने फेसबुक पर इसका वीडियो भी शेयर किया है। वीडियो में गले में माला डाले हुए दलित श्रद्धालु करीब 50-वर्षीय पुजारी के कंधों पर हाथ जोड़े बैठा है, और आसपास चल रही भीड़ इस अनूठी घटना का वीडियो बना रही है।
वहीं 25-वर्षीय आदित्य पारासरी ने बताया कि मेरे मूल निवास महबूबनगर में ही मुझे हनुमान मंदिर में प्रवेश से मना कर दिया गया था। दलित होने की वजह से मेरा परिवार इस घटना से उत्पीड़ित और अपमानित महसूस कर रहा था। कई मंदिरों में अब भी यह सब जारी है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह बदलाव की शुरुआत है। इससे लोगों की मानसिकता बदलेगी। 25-वर्षीय आदित्य पारासरी ने कहा कि मेरे मूल निवास महबूबनगर में ही मुझे हनुमान मंदिर में प्रवेश से मना कर दिया गया था। दलित होने की वजह से मेरा परिवार इस घटना से उत्पीड़ित और अपमानित महसूस कर रहा था। कई मंदिरों में अब भी यह सब जारी है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह बदलाव की शुरुआत है। इससे लोगों की मानसिकता बदलेगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एस-सी\एस-टी एक्ट में संशोधन करते हुए कहा था कि तुरंत गिरफ्तारी के बजाय मामले की पूरी जानकारी के बाद ही कोई एक्शन लिया जाना चाहिए। जिसके विरोध में देश के कई हिस्सों में दलित समुदाय के लोगों ने हिंसात्मक प्रदर्शन किए थे जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई थी। आपको बता दें कि यह क़ानून दलितों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने वाले जातिसूचक शब्दों और हज़ारों सालों से चले आ रहे ज़ुल्म को रोकने में मदद करता है।