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किसान आंदोलन का 23वां दिन, आज मध्यप्रदेश के किसानों से पीएम करेंगे संवाद

farmers protest 1 किसान आंदोलन का 23वां दिन, आज मध्यप्रदेश के किसानों से पीएम करेंगे संवाद

कृषि कानूनों के खिलाफ आज किसानों के आंदोलन का 23वें दिन है. बीते दिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आंदोलन करना किसान का हक है और कोर्ट ने किसान आंदोलन में हस्तक्षेप करने के इनकार कर दिया था. इसी के साथ एक कमेटी बनाने की बात सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पहले दिन की सुनवाई में कही गई थी कि जिसमें किसान और सरकार बातचीत से इस मसले का हल निकालेंगे.

‘सुप्रीम कोर्ट की कमेटी पर विश्वास’
वहीं किसान मजदूर संघर्ष कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई कमेटी पर अपना विश्वास जताया है. लेकिन साथ ही ये भी कहा कि अगर इस कमेटी से भी कोई हल नहीं निकलता है तो ये आंदोलन जारी रहेगा. सुप्रीम कोर्ट में बीते दिन की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि किसानों को प्रदर्शन का हक है, लेकिन ये कैसे हो इसपर चर्चा हो सकती है. अदालत ने कहा कि हम प्रदर्शन के अधिकार में कटौती नहीं कर सकते हैं. अदालत ने कहा कि प्रदर्शन का अंत होना जरूरी है, हम प्रदर्शन के विरोध में नहीं हैं लेकिन बातचीत भी होनी चाहिए. चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें नहीं लगता कि किसान आपकी बात मानेंगे, अभी तक आपकी चर्चा सफल नहीं हुई है इसलिए कमेटी का गठन जरूरी है. अटॉर्नी जनरल ने अपील की है कि 21 दिनों से सड़कें बंद हैं, जो खुलनी चाहिए. वहां लोग बिना मास्क के बैठे हैं, ऐसे में कोरोना का खतरा है.

पीएम मोदी आज मध्यप्रदेश के किसानों से करेंगे बात
पीएम नरेंद्र मोदी आज मध्यप्रदेश के किसानों के साथ संवाद करेंगे . इसी कार्यक्रम में करीब दो हजार पशु और मत्स्य पालकों को किसान क्रेडिट कार्ड दिए जाएंगे. इस कार्यक्रम के दौरान पीएम किसानों को तीनों कृषि कानूनों के फायदे बताएंगे.

ये संवाद वर्चुअल होगा. इस कार्यक्रम के दौरान 35 लाख किसानों के बीच फसल हानि की भरपाई के मद में 1,600 करोड़ रुपये बांटे जाएंगे. इस वर्चुअल संवाद के लिए सारी व्यवस्थाएं की गई हैं. राज्य की  23 हजार ग्राम पंचायतों में प्रधानमंत्री के संबोधन का सीधा प्रसारण किया जाएगा.

22 दिन से राजधानी की सीमा पर डटे है किसान
आपको बता दें केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले 22 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत है. किसानों और सरकार के बीच में कई दौर की बैठके हो चुकी हैं, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया है. किसान तीनों कानूनों को रद्द करने पर अड़े हुए हैं.

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