उत्तराखंड। सनातन धर्म में हर दिन अलग-अलग मान्यता होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर दिन का हमारे दैनिक जीवन में अलग ही महत्व होता है। जैसा कि सभी जानते हैं इस वर्ष कुंभ मेले का आयोजन देवभूमि हरिद्वार में किया जाने वाला है। इस दिन का साधु-संतो को बड़ी ही बेशवरी से इंतजार रहता है। कुंभ के दौरान सभी साधु-संत शाही स्नान करने के लिए कुंभ नगरी पहुंचते हैं। कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में एक बार किया जाता है। कुंभ का आयोजन चार तीर्थ स्थानों पर किया जाता है। जिनमें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में किया जाता है। इस बार साल 2021 में कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाना है। जंगलों में जाकर धर्म ध्वजा को न्योता देना और वन देवता की अनुमति से उसे अखाड़ों में लाना कुंभ का बड़ा आयोजन है। प्रत्येक कुंभ में साधु संन्यासी अखाड़ों में धर्म ध्वजाओं की स्थापना समारोह पूर्वक करते हैं। धर्म ध्वजा स्थापना के बाद दशनाम अखाड़ों में कुंभ के आयोजन प्रारंभ हो जाते हैं।
संतों की पेशवाई के बाद होती है धर्म ध्वजा की स्थापना-
बता दें कि नागाओं, बैरागियों, उदासियों और निर्मलों के कुल 13 अखाड़े हैं। उनका जुड़ाव देश के हजारों मठों और आश्रमों से है। जब भी कुंभ मेले का आयोजन किसी भी कुंभ नगर में होता है, तब संतों की पेशवाई के बाद धर्म ध्वजा की स्थापना होती है। उससे पहले अखाड़े अपने-अपने मुहूर्त निकालकर वन देवता से धर्म ध्वजा देने की मांग करने जंगल जाते हैं। इसके लिए पहले समय में विधिवत समारोह होता था। आज भी यह रस्म अदायगी की जाती है। एक मुहूर्त में साधु संत वनों में जाकर ऊंची धर्म ध्वजा के लिए पेड़ का चयन करते हैं। इस पेड़ पर अखाड़ा निशानदेही कर देता है। बाद में एक और मुहूर्त में उस वन से पेड़ को काटा जाता है। काटने से पहले साधु बाबा बाकायदा पूजा कर पेड़ से उसे काटने की अनुमति लेते हैं।
जानें बाबा गोपालानंद ने क्या कहा-
इसके साथ ही बाबा गोपालानंद बताते हैं कि उस जमाने में कई बार साधु संतों को आभास हो जाता था कि जिस पेड़ को विशाल ध्वजा के लिए लेने आए हैं, वह पेड़ वन छोड़कर उनके साथ जाने को तैयार नहीं। तब उस पेड़ की जगह किसी और पेड़ का चयन किया जाता था। अखाड़ों में धर्म ध्वजा स्थापना के दिन भव्य आयोजन होते हैं। इस बार यह आयोजन फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च में होने वाले स्नान से पहले होगा।