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महिला आयोग की जांच टीम ने हाल में देशभर के आश्रय घरों का दौरा किया

delhi aayog महिला आयोग की जांच टीम ने हाल में देशभर के आश्रय घरों का दौरा किया

नई दिल्ली। महिला आयोग की जांच टीम ने हाल में देशभर के आश्रय घरों का दौरा कर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि प. बंगाल में आश्रय घरों में रहने वाली महिलाओं को शारीरिक प्रताड़ना दी जाती है। इसी तरह ओडिशा में एड्स पीड़िताओं और उत्तर प्रदेश में दिव्यांगों को इलाज नहीं मिलता। महिला आयोग ने जांच टीम का गठन किया था। इस टीम ने प. बंगाल में 5, ओडिशा-कर्नाटक में 8-8 और उत्तर प्रदेश के 5 सुधार गृहों का निरीक्षण किया। 26 सुधार गृहों के निरीक्षण में ये पाया गया कि केवल एक ही इस योजना के लिए तय किए गए दिशा-निर्देशों के मुताबिक चल रहा है। ये आश्रय घर केंद्र या एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे हैं। इनमें यौन शोषण की शिकार और निर्धन-बेसहारा महिलाओं को आश्रय दिया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक, उप्र. के सुधार गृहों में दिव्यांग (दिमागी रूप से बीमार) महिलाएं मिलीं।

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बता दें कि लेकिन इनके इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं नजर आई। जांच के समय ये जमीन पर रह रही थीं। प. बंगाल में आश्रय घरों में रहने वालों ने शिकायत की कि काउंसलर उन्हें शारीरिक प्रताड़ना देता है। 7 दिव्यांगों को एक कैदखाने जैसे सुधार गृह में रखा गया था। यह पूरी इमारत ही गंदी थी, जो स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, ओडिशा में एक महिला बच्चे के साथ मिली। यह मानव तस्करी से जुड़ा मामला था। उसने कहा कि वह एचआईवी की मरीज है और एनजीओ उसे इलाज की कोई सुविधा नहीं देता। वह अपने अभिभावकों के पास जाना चाहती थी, लेकिन उसे जबरदस्ती सुधार गृह में रोका गया।कर्नाटक में सामने आया कि यहां आश्रय घरों में अवसादग्रसित लोगों को मनोवैज्ञानिक सलाह देने की कोई सुविधा नहीं है। इसके अलावा यहां व्यावसायिक प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता। यहां एक सुधार गृह तो केवल कागजों पर चल रहा था।

साथ ही महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि हमने एक ऐसी व्यवस्था का प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत आश्रय घरों में रहने वालों के बारे में पूरी जानकारी महिला और बाल विकास विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि जिला स्तर पर निगरानी समिति हर तीन महीने में आश्रय घरों का निरीक्षण करे। दिव्यांगों (मानसिक विकलांग) के लिए सोशल वर्क या सोशोलॉजी में मास्टर डिग्री रखने वाले नहीं, बल्कि क्लीनिकल साइकोलॉजी करने वालों को काउंसलर नियुक्त किया जाए।

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