बारावफात या ईद-ए-मीलाद अथवा ‘मीलादुन्नबी’ इस्लाम धर्म का एक बहुत ही प्रमुख त्योहार है। इस मौके पर पैगम्बर मुहम्मद का जन्म दिवस मनाया जाता है। इस्लाम को मानने वाले लोग पैगम्बर मुहम्मद का शुक्रिया अदा करते हैं। उनके अनुयायी इसलिए उनका शुक्रिया अदा करते हैं क्योंकि वे तमाम आलम के लिए रहमत बनकर आए थे। ईद-ए-मीलाद यानी ईदों से बड़ी ईद के दिन, तमाम उलेमा और शायर कसीदा-अल-बुरदा शरीफ पढ़ते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म रबीउल अव्वल महीने की 12वीं तारीख को हुआ था।
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मोहम्मद ने नहीं मनाया कभी अपना जन्म दिवस
गौरतलब है कि पैगम्बर मुहम्मद का जन्मदिन इस्लाम के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दिन मना जाता है। बावजूद इसके न तो पैगम्बर साहब ने और न ही उनकी अगली पीढ़ी ने इस दिन को मनाया। मुहम्मद सहाब वास्तव में सादगी पंसद व्यक्ति थे। मुहम्मद ने कभी इस बात पर जोर नहीं दिया कि किसी की पैदाइश पर जश्न जैसा माहौल या फिर किसी के इंतकाल पर मातम मनाया जाए।
बारावफात को मनाने की शुरुआत मिस्र में 11वीं सदी में हुई थी। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इस त्यौहार को मनाना शुरू किया था। पैगम्बर के रुख़्सत होने के चार सदियों बाद शियाओं ने इसे त्योहार को शक्ल दी।13वीं सदी में पैदा हुए अरब के सूफी बूसीरी ने इस पर्व को मनाना शुरू किया था। इस दिन उनकी ही नज़्मों को पढ़ा जाता है। इस दिन की फजीलत इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसी दिन पैग़म्बर साहब रुख़्सत हुए थे।
क्यों कहते हैं बारावफात
बता दें कि भारत के कुछ हिस्सों में इस अवसर को लोग बारावफात के तौर पर मनाते हैं।गौर करें कि अपनी रुख़्सत से पहले पैग़म्बर, बारा यानी बारह दिन बीमार रहे थे।यहां वफात शब्द का मतलब है, इंतक़ाल। इसलिए पैग़म्बर साहब के रुख़्सत होने के दिन को बारवफात कहते हैं। उस दौरान उलेमा व मज़हबी दानिश्वर तकरीर व तहरीर के द्वारा मुहम्मद साहब के जीवन और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह देते हैं। इस दिन उनके पैगाम पर चलने का संकल्प लिया जाता है।बता दें कि इस त्यौहार को मनाने के पीछे का उद्देश्य है एकेश्वरवाद को बढ़ावा देना।
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बारावफात मनाने का उद्देश्यः
मालूम हो कि इस दिन एकेश्वरवाद की शिक्षा दी जाती है कि अल्लाह एक है और पाक बेऐब है, उस जैसा कोई नहीं। ईद-ए मीलादुन्नबी को सभी मुस्लिम नहीं मनाते हैं।इस लिए यह बहुत बड़े पैमाने पर नहीं मनाया जाता है। इस सब के बावजूद मोहम्मद साहब के पैग़ाम को जानने और उस पर अमल करने के लिए इस दिन को खास दिन माना जाता है।जाहिर है कि इस्लाम को मानने वाले लोग इस दिन इबादत करते हैं।हिन्दुस्तान में भी मीलादुन्नबी उत्साह से मनाया जाता है।
हिंदुस्तान में कहां पर बारावफात को खास तौर पर मनाते हैं
जम्मू-कश्मीर के हज़रत बल में बड़ा जलसा होता है। सुबह की नमाज (फज्र) के बाद उनकी मुबारक चीज़ों का मुजाहरा किया जाता है। पूरी रात दुआ मांगी जाती है। जिसमें हजारों की संख्या में लोग शरीक होते हैं। वहीं देश की राजधानी दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन दरगाह, अजमेर-ए-शरीफ के हज़रत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भी लोग इकट्ठे होकर दुआएं मांगते हैं। इसके अलावा लखनऊ में बारावफ़ात के दिन सुन्नी मुसलमान मध-ए-सहाबा जुलूस निकालते हैं। इसके अलावा हैदराबाद की मक्का मस्जिद और दूसरी मस्जिदों भी इस दिन लोग दुआएं मांगते हैं।