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…जब मंत्री ने लोगों से पूछा, बंदरों की समस्या से कैसे निपटें ?

thakur singh bharmauri ...जब मंत्री ने लोगों से पूछा, बंदरों की समस्या से कैसे निपटें ?

शिमला। हिमाचल प्रदेश के वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने रविवार को कहा कि प्रदेश सरकार बंदरों के खतरे से बेहतर तरीके से निपटने के मुद्दे पर लोगों से राय मांग रही है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षो में बंदरों के कारण राज्य में सैकड़ों करोड़ रुपये मूल्य की फसल नष्ट हुई है। भरमौरी ने आईएएनएस से कहा कि बंदरों से हो रही क्षति को रोकने के लिए उन्होंने लोगों से दीर्घकालीन सुझाव देने का निवेदन किया है जिनमें किसान, पशु अधिकार कार्यकता और विधायक शामिल हैं। राज्य में बंदरों की बढ़ती संख्या से खेती और अर्थव्यवस्था को बड़ी क्षति पहुंच रही है।

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राज्य के वन्यजीव विभाग के अनुसार साल 1990 से 2004 के बीच राज्य में बंदरों की संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई जो 61,000 हजार से बढ़कर 3,17,000 हो गई।भरमौरी ने कहा कि सरकार के बंध्याकरण कार्यक्रम के कारण बंदरों की संख्या में थोड़ी कमी हुई है। अभी राज्य में बंदरों की संख्या 2,07,614 है। उन्होंने कहा कि यह संख्या अब भी काफी अधिक है।

वन मंत्री को लोगों की राय लेने का प्रयास करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि इस पुराने मुद्दे पर लोग दो खेमे बंट गए हैं। एक वर्ग क्षति पहुंचाने वाले पशुओं के खिलाफ कड़े कदम उठाने के पक्ष में हैं तो दूसरा वर्ग नैतिक और कानूनी चिंताएं जता रहा है। कानूनी तकरार के इस पुराने विषय पर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय में भी बहस हुई है।

शिमला नगर निगम क्षेत्र में बंदरों को नाशक पशु घोषित करने पर जहां उच्च न्यायालय ने गत 19 अप्रैल को केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया, वहीं पिछले 20 जून को शीर्ष अदालत ने बंदरों की सामूहिक हत्या करने की अनुमति देने वाली अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

केंद्र सरकार ने गत 14 मार्च को एक अधिसूचना जारी कर शिमला में बंदरों को छह महीने की अवधि के लिए नाशक जीव घोषित किया था। गत मई महीने में एक दूसरी अधिसूचना जारी की गई जिसमें अन्य जिलों कांगड़ा, उना, चंबा, बिलासपुर, शिमला, सिरमौर, कुल्लू, हमीरपुर, सोलन और मंडी में बंदरों को एक साल की अवधि के लिए नाशक पशु घोषित किया गया। यह अधिसूचना राज्य में बंदरों की सामूहिक हत्या की अनुमति देती है।

नाशक जीव घोषित किए जाने के बावजूद राज्य में बंदरों की सामूहिक हत्या अभी तक शुरू नहीं हुई, क्योंकि उच्च न्यायालय ने साल 2011 में बंदरों को गोली मारने की राज्य सरकार की अनुमति पर रोक लगा दी थी। फसलों की रक्षा के लिए किसानों को सरकार ने बंदरों को गोली मारने की अनुमति दी थी।

भरमौरी ने कहा कि आदेश वापस लेने के लिए अब सरकार उच्च न्यायालय से निवेदन करेगी क्योंकि शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की अगली सुनवाई आगामी जुलाई महीने में होगी। चूंकि, उच्च न्यायालय ने अपना आदेश वापस नहीं लिया है, इसलिए अभी हिमाचल प्रदेश में बंदर कानूनी तौर पर सुरक्षित हैं।

(आईएएनएस)

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