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अम्मा के बाद अब कौन सी करवट लेगी तमिलनाडु की राजनीति ?

Panerselwam अम्मा के बाद अब कौन सी करवट लेगी तमिलनाडु की राजनीति ?

नई दिल्ली। जयललिता की मौत जहां एक तरफ तमिलनाडु की सियासत में एक बड़ा भूचाल लाने वाला है इसके साथ ही जिस रुतबे को लेकर अम्मा राजनीति कर रही थी एआईडीएमके में अब उस स्तर का कोई कद्दावर नेता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि मौत के बाद आनन फानन में पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बना दिया गया है लेकिन जिस तरह से जयललिता लोगों तक अपनी पहचान बनाने में सफल हुई थीं और अपने अकेले के दम पर राज्य की राजनीति में धाक बनाए हुई थीं अब आने वाले समय में किसी भी नेता तक उस स्तर तक पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती होगी।

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करुणानिधि को 1991 में हराने के बाद जयललिता पहली बार सीएम की कुर्सी पर बैठी थीं, तब से लगातार उनकी पहुंच हर एक तमिल के दिल में बनी हुई है, चाहे वो मुख्यमंत्री रही हों या फिर विपक्ष में। आलम इस कदर हो गया था कि तमिलनाडु की पहचान उनके नाम से होने लगी और उनके बिना वहां पर सियासत की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। जयललिता ने राजनीति करने के साथ लोगों के दिल में अपनी अलग पहचान बनाई है जिसका असर यह रहा है कि उनके आखिरी दर्शन के लिए इतने लोग इकट्ठा हुए कि मैदान में पांव रखने की जगह नहीं बची। अब जब जयललिता पार्टी में बस यादों के तौर पर ही रह गई हैं ऐसे में कई सारे सवाल खड़े हो रहे हैं। पार्टी अब किस करवट बैठेगी? क्या वही रुतबा कायम रह पाएगा जो अम्मा ने बनाया था? क्या कोई ऐसा नेता तमिल सियासत में आ पाएगा जो अम्मा का स्थान ले सके?

विरोधी पार्टियों के लिए होगा फायदा– तमिलनाडु के राजनीति में एआईडीएमके की सबसे बड़ी विरोधी डीएमके रही है, जयललिता के बाद सियासत में डीएमके की पहुंच अच्छी कही जा सकती है। हालांकि डीएमके के सबसे कद्दावर नेता और पार्टी प्रमुख करुणानिधि अब बीमार रहते हैं और राजनीति में इस तरह से सक्रिय नहीं है, लेकिन उनके बेटे एमके स्तालिन ने अपने पिता के धरोहर को अच्छी तरह से संभाला है, लेकिन अब अगर डीएमके फूंक फूंक कर कदम रखती है तो आने वाले वर्षों में एआईडीएमके से आगे आ सकती है, हालांकि जल्दबाजी डीएमके को भारी पड़ सकती है, क्योंकि जनता का अम्मा और एआईडीएमके से जो भावनात्मक जुड़ाव है, मौजूदा दौर में अगर किसी अन्य पार्टी ने इसपर प्रहार किया तो राजनीति में उस पार्टी के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।

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कैसा रहेगा एआईडीएमके का भविष्य- राजनीतिक दृष्टिकोड़ से देखा जाए तो अम्मा के ना रहने के बाद से पार्टी में आने वाले समय में मनभेद साफ देखने को मिल सकता है, हालांकि अभी सत्तारुढ़ पार्टी के लिए करीब साढ़े चार साल का समय शेष है, 15 वें विधानसभा चुनाव में एआईडीएमके को अम्मा राज में जीत मिली थी और अब अम्मा के ना रहने के बाद पनीरसेल्वम को सीएम बनाया गया है, ऐसे में फिलहाल ना तो पार्टी चुनाव चाहेगी और ना ही पार्टी को काई खतरा है। हालांकि बाद में शशिकला और पनीरसेल्वम के बीच क्या संबंध रहते है बहुत कुछ इसपर निर्भर करेगा। सवाल यह भी रहेगा क्या शशिकला पार्टी के रुतबे को बरकरार रख पाएंगी? क्योंकि उनका अभी तक प्रत्यक्ष रूप से राजनीति का अनुभव नहीं रहा है।

भाजपा बनाना चाहेगी अपनी पहुंच- जयललिता के ना रहने के बाद अब तमिलनाडु में राजनीति में उथल पुथल देखने को मिल सकता है, जिसका फायदा राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर भाजपा और कांग्रेस दोनों उठाने का प्रयास करेंगी। हालांकि राज्य में एआईडीएमके और डीएमके की आस पास ही राजनीति घूमती नजर आती है, लेकिन इनमें से काई भी पार्टी जैसे ही कमजोर पड़ी, राष्ट्रीय पार्टियां वहां पर अपना दांव खेल सकती हैं। भाजपा के लिए अब तमिलनाडु की राजनीति में पैर जमाने का अच्छा समय हो सकता है, इसके लिए गौर किया जाए तो संकेत देखने को भी मिलते हैं। भाजपा ने दांव खेलना शुरु कर दिया है, शशिकला के हाथ में अब कमान है ऐसे में पीएम ने पहुंच कर उन्हे सांत्वना दी, अम्मा के मौत पर राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया गया जो आमतौर पर नहीं होता है, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बीजेपी की नजर अपने पैर जमाने पर टिकी हुई है।

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वैसे तो राजनीतिक तौर पर एआईडीएमके और भाजपा के संबंध कोई बहुत अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर जयललिता और मोदी के संबंध मधुर थे जिसका भाजपा अब शशिकला के साथ इस्तेमाल करना चाहेगी। भाजपा ने जिस तरह से तमिल लोगों के साथ सहानुभूति का परिचय दिया है इससे आने वाले दिनों में बीजेपी की तमिल सियासत में सुगबुगाहट देखी जा सकती है।

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस भी अपनी पहुंच बनाने के प्रयास में है लेकिन उनके लिए यह रास्ता अपेक्षाकृत कठिन है क्योंकि कांग्रेस पहले से डीएमके के साथ रही है, इसलिए इस पार्टी के मुखालिफ मतदाताआें की तलाश होगी, ऐसे में कांग्रेस के लिए हालिया दौर में कुछ बहुत नजर नहीं आता है लेकिन अगर यहां पर भाजपा अपने दांव में सफल रही और तमिल में भाजपा को कोई अच्छा चेहरा मिला तो बीजेपी के लिए वह तुरुप का इक्का साबित हो सकता है।

abhilash -अभिलाष श्रीवास्तव

 

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