नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर हो रही सुनवाई को संवैधानिक पीठ को रेफर किया गया है। गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई में कोर्ट ने इस मामले को संवैधानिक पीठ को सौंपते हुए कहा कि अब इस मामले में 11 मई को सुनवाई होगी। अटॉर्नी जनरल ने मामले की सुनवाई गर्मी की छुट्टी से पहले शुरू करने का अनुरोध किया लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कर रहा है विरोध
तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मांग की है कि तीन तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामें में यह बात कही है। हलफनामें में कहा गया है कि अगर इसे खत्म किया गया तो मर्द अपनी पत्नी से छुटकारा पाने के लिए उसे जलाकर मार सकता है या फिर उसका कत्ल कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दायर किए गए हलफनामे में कहा गया है कि शादी, तलाक और गुजाराभत्ता की परंपराए पवित्र ग्रंथ कुरान पर आधारित हैं और अदालतें ग्रंथ की पंक्तियों की जगह अपनी व्याख्या को स्थापित नहीं कर सकतीं। साथ ही पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसा करना संविधान का उल्लंघन है।
भारती संविधान में संरक्षण
गौरतलब है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-25, 26 और 29 के तहत पर्सनल लॉ को संरक्षण मिला हुआ है। बोर्ड का ये भी कहना है कि लोगों में इस बात की मिथक है कि तलाक के मामले में मुस्लिम समुदाय के पुरूषों को एक तरफा संरक्षण मिला हुआ है।
‘तलाक के खिलाफ शरीयत कानून’
सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दायर हलफनामे में ये भी कहा गया है कि शरीयत कानून पति और पत्नी के बीच लंबे रिश्ते की बात करता है। इस कानून में कई सारे ऐसे नियम है जो शादी के रिश्ते को टूटने से बचाने के लिए बनाए गए है।