बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने राजस्थान में चुनाव प्रचार में कहा कि आरक्षण का आधार गरीबी होना चाहिए। बासपा प्रमुख ने कबा कि जाति के स्थान पर आर्थिक स्थिति को आरक्षण का आधार बनाया जाना चाहिए। मायावती का यह बयान आरक्षण के लिए इस समय चल रही मागों के बीच बेहद खास है।
गौरतलब है कि मायावती का ये बयान ऐसे समय में आया है जब महाराष्ट्र की सरकार ने मराठों को नौकरी और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण देने को मंजूरी दी है और कांग्रेस मुसलमानों के लिए अलग से आरक्षण देने की बात दोहरा रही है। बीते रोज महाराष्ट्र विधानसभा में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक को पास किया गया था।
इसे भी पढ़ेःराजस्थानः मुख्य चुनाव आयुक्त ने किया स्वीप प्रदर्शनी का उद्घाटन
बता दें कि राजस्थान के गुर्जर और हरियाणा के जाट पहले से ही अपने लिए आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर चुके हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी कई जातियां आरक्षण की मांग कर रही हैं। उत्तर प्रदेश सरकार अति पिछड़े वर्ग की मांगों को पूरा करने के लिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण को तीन भागों में बांटने पर विचार कर रही है। ऐसे में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने वाला मायावती का बयान देश भर में चर्चा का विषय है। लेकिन मायावती ने ऐसा बयान कभी भी उत्तर प्रदेश नहीं दिया है।
इसे भी पढ़ेंःIPL 2019: राजस्थान रॉयल्स में स्टीव स्मिथ की वापसी, उनादकट हुए बाहर
गौरतलब है कि देश में लंबे अरसे से आरक्षण नीति की समीक्षा किए जाने की मांग चल रही है। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि आरक्षण नीति की समीक्षा होनी चाहिए कि क्या इसका लाभ वास्तविक लोगों को मिल रहा है। इस पर बड़ा बवाल उठा और कहा गया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरक्षण के विरुद्ध है। लेकिन अगर गौर किया जाए तो पता लगता है कि जब भी किसी गैर आरक्षित वर्ग के व्यक्ति या समूह ने आरक्षण की समीक्षा की बात की है। तो उसको अनुसूचित जाति विरोधी करार दिया गया जिसकी वजह से इस पर अमल नही हो पाया है।
इसे भी पढ़ेःराजस्थान : बीजेपी ने जारी की विधानसभा उम्मीदवारों की दूसरी सूची, यहां देखे
दिल चस्प है कि अब स्वयं आरक्षित वर्ग से आने वाली मायावती ने जातिगत आरक्षण नही बल्कि आर्थिक आरक्षण की बात की है तो ऐसे में क्या मायने हो सकते हैं यह समय तय करेगा लेकिन इतना जरूर है कि इस पर सियासी चर्चा जरूर होगी। भले ही औपचारिक रूप से इस बात का कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है कि वर्तमान आरक्षण नीति से अनुसूचित जाति या जनजाति के कितने प्रतिशत लोगों को लाभ मिला है। लेकिन अनौपचारिक रूप से इस संबंध में जो समीक्षा की गई है उससे यही स्पष्ट होता है कि आरक्षण का लाभ महज कुछ परिवारों तक सीमित रहा है।