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नाक छिदवाने के पीछे हैं वैज्ञानिक कारण, जाने असली वजह

नाक छिदवाने के पीछे हैं वैज्ञानिक कारण नाक छिदवाने के पीछे हैं वैज्ञानिक कारण, जाने असली वजह

नई दिल्ली।  भारतीय संस्‍कृति में आभूषण का काफी महत्व होता है। लेकिन उस आभूषण को पहनने के पीछे भी कोई ना कोई कारण होता है। जिसका उल्लेख हमारे वेदों में किया गया है। कहा जाता है कि महिलाओं को 12श्र्गांर करना पड़ता है। हम अपनी इस पोस्ट में आपोक हर रोज एक श्र्गांर को करने के पीछे का कारण बताएंगे जिसका संबध वैज्ञानिक रुप से है।

नाक छिदवाने के पीछे हैं वैज्ञानिक कारण, जाने असली वजह
नाक छिदवाने के पीछे हैं वैज्ञानिक कारण, जाने असली वजह

आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि महिलाएं नाक क्यो छिदवाती हैं। महिलाओं का नाक छिदवाना और उसमें नथ पहनना यूं तो आजकल एक फैशन ट्रेंड बन चुका है लेकिन इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है आइए जानते है-

वेदों और शास्त्रों के मुताबिक

हिंदी धर्म के वेदों में महिलाओं के नाक छिदवाने का कारण बताया गया है।

  • वेदों और शास्त्रों में लिखा गया है कि नाक छिदवाने से महिला को माहवारी पीड़ा से राहत मिलती है।
  • प्रसव के दौरान शिशु को जन्म देने में आसानी होती है।
  • नाक छिदवाने से माइग्रेन में भी राहत मिलती है।

कैसे करता है मदद

  • नाक छिदवाने से शरीर के विशिष्ट प्रेशर पॉइंट्स प्रभावित होते हैं। इनसे शरीर में एक खास किस्‍म का दबाव बनता है जो हॉर्मोन पैदा करता है। यह हॉर्मोन आपके दर्द को कम करने में मदद करते हैं।
  • जिस तरह चाईनीज़ लोग एक्यूपेंचर पद्धति का इस्तेमाल करने से शरीर के विशिष्ट प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव बनता है और आपको दर्द से राहत मिलती है वैसे ही नाक छिदवाने से महिला को दर्द से राहत मिलती है।

बाई ओर छिदवाने का कारण

  • बाई ओर नाक छिदवाने से जगह की नसें नारी के महिला प्रजनन अंगों से जुडी हुई होती हैं।
  • नाक के इस हिस्से पर छेद करने से महिला को प्रसव के समय भी कम दर्द का सामना करना पड़ता है। इस वजह से बाई ओर नाक छिदवाई जाती है।

16 वीं सदी की प्रथा

नाक में छेद करवाने के लिए कोई विशेष उम्र नहीं होती। इसे बचपन, किशोरावस्था, वयस्क होने पर कभी भी करवा सकते हैं। गर्भावस्था में भी महिलाएं नाक छिदवा सकती है। इससे शिशु पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता है। भारत में नाक छिदवाने को संस्‍कृति से जोड़कर देखा जाता है। पर क्या आप जानती हैं की यह प्रथा पूर्वी देशों से आई है। 16वी सदी में यह प्रथा भारत में आई थी। वेदों में इसके फायदे के बारे में लिखा गया है।

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