नई दिल्ली। पुत्रदा एकादशी व्रत का शास्त्रों में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ये व्रत भगवान विष्णु और उनकी योगमाया को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करते हैं उनको पारिवारिक जीवन में बुहत लाभ मिलता है। पुराणो में कहा गया है इस व्रत रखने वाला धरती पर भी सुख पाता हैं और जब आत्मा देह का त्याग करती है तो उसे विष्णु लोक में एक खास स्थान प्राप्त होता है।
जानिए क्या है व्रत की कथा:-
पद्म पुराण में कहा गया है कि धर्मराज युधिष्ठिर श्री कृष्ण से एकादशी की कथा एवं महात्मय का रस पान कर रहे थे। उस समय उन्होंने भगवान से पूछा कि मधुसूदन पष शुक्ल एकादशी के विषय में मुझे ज्ञान प्रदान कीजिए। तब श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं। पष शुक्ल एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस व्रत को विश्वदेव के कहने पर भद्रावती के राजा सुकेतु ने किया था। राजा सुकेतु प्रजा पालक और धर्मपरायण राजा थे। उनके राज्य में सभी जीव खुशी से रहते थे, लेकिन राजा और रानी स्वयं बहुत ही दुखी रहते थे।
उनकी तकलीफ की एक मात्र वजह बे-औलाद होना है। वो हमेशा इसी सोच में डूबे रहते थे कि आखिर मेरे बाद मेरे वंश का क्या होगा। मृत्यु के बाद अगर बेटे के हाथों अंतिम संस्कार नहीं किया गया तो उनकी मुक्ति नहीं मिलेगी। ऐसी कई बातें सोच -सोच कर राजा परेशान रहते थे। एक दिन बहुत दुखी मन से राजा ने अपनी परेशानी उन्हें बताई। तब विश्वदेव ने कहा राजन आप पष शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत कीजिए, इससे आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने ऋषि की सलाह मानकर व्रत किया और कुछ दिनों के पश्चात रानी गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया। राजकुमार बहुत ही प्रतिभावान और गुणवान था।
व्रत रखते समय ध्यान रखने योग्य अहम बातें:-
-पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो व्रत रखना चाहते हैं उन्हें दशमी को एक बार भोजन करना चाहिए।
– एकादशी के दिन स्नान करने के बाद गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करें।
-व्रत रखने वाले को नर्जल रहना चाहिए।
-अगर व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं।
– द्वादशी तिथि को यजमान को भोजन करवाकर उचित दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद लें।
-उसके बाद ही भोजन करें।