पर्यटन

दरगाह से लेकर ढाई दिन झोपड़ा बनाती है अजमेर को खास

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नई दिल्ली। अगर आप कोई ट्रिप प्लान करना चाहते है लेकिन जगह डिसाइड नहीं कर पा रहे तो आप अजमेर की ट्रिप प्लान कर सकते है। अजमेर, जयपुर के दक्षिण पक्ष्चिम में स्थित ऐरवालिस में अजमेर की स्थापना 7वीं शताब्दी में हुई थी। अजमेर को राजा अजयपाल चौहान ने स्थापित किया था। आपको बता दें की अजमेर को इसका नाम अजय मेरु से मिला। अजय मेरु का अर्थ है अजय हिल्स।

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12वी शताब्दी के बाद अजमेर पर काफी सारे शासको ने शासन किया। लेकिन सबसे अहम शासन इस पर मुगलों का था। इसी समय में मुगलों ने यहां अजमेर शरीफ दरगाह बनाई और यह मुसलमानों का अहम केन्द्र बन गया। हालांकि अब अजमेर एक शैक्षिक और सांस्कृतिक केन्द्र माना जाता है।

अब अगर यहां की टूरिस्ट प्लेस की बात करें तो अजमेर में काफी अच्छी जगह है जंहा आप अपनी छुट्टियां मना सकते है। तो आइए आपको बताते है इन प्लेसेज के बारे में…

अजमेर शरीफ की दरगाह

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यह एक सूफी दरगाह है, जिसमें ग़रीब नवाज़ के ‘मकबरा’ (कब्र), सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती शामिल हैं। 13 वीं शताब्दी में निर्मित, दरगाह सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय है, जो लोग यहां प्रार्थना करते हैं, उनकी प्रार्थनाओं का जवाब दिया जाता है। दरगाह में तीन दरवाजे हैं – मुख्य द्वार या निजाम द्वार, शाहजहां द्वार मुगल सम्राट और बुलंद दरवाजा। इस पवित्र दरगाह में एक और बड़ा आकर्षण पवित्र और शानदार भोजन है जो भक्तों को दिया जाता है। भक्त इस प्रसाद से आशीर्वाद पाने के लिए भीड़ में इकट्ठा होते हैं।

ढाई दिन का झोपड़ा

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ढाई दिन का झोपड़ा पहले एक संस्कृत कॉलेज था। लेकिन 1198 में सुल्तान घोरी ने इसे एक मस्जिद में बदल दिया। यह भारत-इस्लामी वास्तुकला का एक आकर्षक प्रतीक है। सन् 1213 में सुल्तान इल्तुतमिश ने इस संरचना पर और काम कराया था। इस जगह का नाम ढाई दिन का झोपड़ा इसलिए रखा गया क्योंकि इस कॉलेज को मस्जिद में बदलने में ढाई दिन का समय लगा था।

सोन जी की नसीया

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सोन जी की नसीया को जैन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को 1865 में बनाया गया था। यह दो मंजिला भवन है और इसमें लकड़ी की गिल्ट पर जैन पौराणिक कथाओं की छवियों और पुरानी जैन अवधारणाओं का वर्णन है। इसके एक भवन मे लकड़ी पर सोना लगा कर रचना की गई है और इसलिए इसके मुख्य कक्ष को सोने की नगरी भी कहा जाता है।

आनासागर झील

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यह एक सुंदर जगह है जो काफी शांत दिखाई देती है। इस झील का निर्माण 1892 में एक अंग्रेजी इंजीनियर, श्री फॉय ने किया था। यह झील वंहा के अरावली रेंज का सुंदर दृश्य पैश करती है।

संग्राहलय

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मुगल काल में अजमेर का यह संग्राहलय एक सैन्य गतिविधी की जगह थी। अकबर ने इसे 1570 में बनवाया था और बाद में यह एक ब्रिटिश अस्पताल के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा। यह संग्राहलय लाल बालुआ के पत्थरों से बना हुआ है और इसमें मुगल और राजपूत शस्त्रगार का शान्दार संग्रह है।

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