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जीवन-यात्रा चलती रहती है, समस्याओं से कैसे निपटा जाये ?

01 जीवन-यात्रा चलती रहती है, समस्याओं से कैसे निपटा जाये ?

हर इंसान के जीवन में कितने ही सुख और दुख के क्षण आते रहते हैं और गुजरते रहते है इन सबके साथ मनुष्य की जीवन-यात्रा चलती रहती है। जिसने भी जन्म लिया है, वह इस सत्य से पीछा नहीं छुड़ा सकता। जीवन का यह सत्य क्या अमीर, क्या गरीब, क्या सबल और क्या निर्बल, क्या पढ़ा-लिखा और क्या अनपढ़-सभी के लिए समान रहता है। हर व्यक्ति सफलता-विफलता, उन्नति-अवनति, हर्ष-शोक को जीता है। सबका अपना-अपना मूल्य होता है। जिस प्रकार मिट्टी का भी मूल्य है और हीरे का भी मूल्य है, क्योंकि मिट्टी का काम हीरा नहीं कर सकता और हीरे का काम मिट्टी नहीं कर सकती। यही जीवन की विविधता जीवन को समग्र, व्यापक और पूर्ण बनाती है। वास्तव में जीवन एक संघर्ष है।

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निश्चित रूप से, इस संसार में ऐसा कोई मानव नहीं होगा, जिसके सामने समस्याएं नहीं आयी हों। हां, इतना अवश्य है कि सबकी समस्याएं भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं, पर होती अवश्य हैं। एक गरीब मजदूर को यह चिंता हो सकती है कि यदि आज काम नहीं मिला तो रोटी का प्रबंध कैसे होगा। तो दूसरी ओर एक उच्चवर्ग के उद्योगपति के लिए संभव है कि इतना अधिक काम का तनाव हो कि सामने मेज पर रखा हुआ खाना खाने की भी फुर्सत न हो अथवा यह भी हो सकता है कि काम के तनाव तथा अधिकता के कारण उसका भोजन करने को मन ही न करे। इसी प्रकार किसी युवा को नौकरी न मिल पाने का दुख है तो कोई अन्य अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं है। किसी किशोर को अनुत्तीर्ण होने का दुख है तो किसी को थोड़े से अंक की कमी के कारण मेरिट-लिस्ट में न आ पाने का गम।

ऐसे न जाने कितने ही उदाहरण हो सकते हैं। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि समस्या अथवा बाधा उत्पन्न होने पर उससे निपटा कैसे जाए? कई लोग कुछ भी संकट आने पर हाथ-पैर छोड़ देते हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ होकर यह सोच ही नहीं पाते कि क्या करें। ऐसी परिस्थितियों में वे या तो स्वयं के भाग्य को कोसते हैं अथवा भगवान को अथवा उस समस्या या संकट के लिए अन्य व्यक्तियों को उत्तरदायी ठहराते हैं। लेकिन यह जीवन के प्रति नकारात्मक नजरिया है। सोचिए, ऐसी सोच रखने वाले के समक्ष क्या स्थिति और भी भयावह नहीं हो जायेंगी? सर्वप्रथम तो यह स्मरण रखना चाहिए कि आपकी समस्याओं के लिए कोई अन्य व्यक्ति उत्तरदायी नहीं है। संकटों को देखकर निराश मत होइए। इन्हीं संघर्षों तथा संकटों की आग में तपकर आपका व्यक्तित्व कुंदन बनकर निखर उठेगा। कोई भी समस्या उत्पन्न होने पर अपना मनोबल बनाये रखें तथा मन में यह विश्वास उत्पन्न करें कि इस समस्या का भी कोई-न-कोई हल अवश्य होगा। बस, इतना विचार दृढ़ करते ही आप आशावाद से भर जायेंगे और आपको स्वयं कोई-न-कोई मार्ग नजर अवश्य आएगा।

जिंदगी एक पन्ने की तरह है, जिसके कुछ अक्षर फूलों से लिखे गए हैं, कुछ अक्षर अंगारों से लिखे गये हैं। क्योंकि जीवन में कहीं सुख का घास है तो कहीं रजनीगंधा के फूल हैं, कहीं रेगिस्तान है तो कहीं सागर है, कहीं मनमोहक घाटियां हैं तो कहीं सुंदर वन हैं, एक जैसा जीवन किसी का नहीं है। सबको संघर्षों से सामना करना पड़ता है। कई बार जीवन-संग्राम में संघर्ष करते-करते बहुत-से व्यक्ति थक-हारकर बैठ जाते हैं। उन्हें स्वयं तथा ईश्वर पर भरोसा नहीं रहता, सारा संसार सारहीन नजर आता है। ऐसी अवस्था में कई व्यक्ति तो आत्महत्या तक का रास्ता चुन लेते हैं जो कदापि उचित नहीं। बड़ी प्रसिद्ध कहावत है कि ‘ईश्वर उनकी सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं,’ अतः लक्ष्य-प्राप्ति के मार्ग में आयी असफलताओं से भयभीत होकर प्रयास करना न छोड़ें। ध्यान रखिए कि छोटे-छोटे कदम रखकर ही एक लंबी यात्रा की जा सकती है। धीरे-धीरे प्रयास करते हुए साधारण मानव भी महामानव बन जाते हैं।

आप खुद के निर्माता खुद ही हैं। सफल हैं या असफल, खुश हैं या नाखुश। जो करना है, आपको ही करना है। अपने हालात के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने का कोई मतलब नहीं होता। हर कोई अपने सुख-दुख, अपने ढंग से जी रहा है। ओशो के अनुसार, ‘यहां कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है। हर कोई अपनी तकदीर बनाने में लगा है।

सुख-दुःख के घर्षण से ही ज्योति प्रकट होती है। चीनी कहावत है कि रगड़ के बिना न तो रत्न पर पाॅलिश आती है और न ही संघर्ष के बिना आत्मा में पूर्णता। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हर व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है। कभी विचारों का संघर्ष, कभी पारिवारिक संघर्ष, कभी आर्थिक संघर्ष, कभी प्रतिस्पर्धा का संघर्ष, कहीं व्यापारिक संघर्ष, अनगिन संघर्षों के घेरे जीवन में देखने पड़ते हैं। एक नन्हा-सा अंकुर एक वृक्ष बनता है, तब तक वह कितने तूफानों से बर्फीली हवाओं से मुकाबला कर चुका होता है। तभी वह बरगद के रूप में प्रख्यात होता है। आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं सभी संघर्षों से युद्ध करके ही महान बने हैं।

जीवन में परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव का क्रम देखना पड़ता है। जीवन व्यवहार में आने वाले अवरोध हमें रोकने व रूलाने नहीं आते। वे छैनी, हथौड़ी की तरह होते हैं जो हमारे सौभाग्य की प्रतिमा उभारने आते हैं। कष्ट कांटों में जिसने गुलाब की तरह पलना सीख लिया, उसने अपना भाग्य बदलना सीख लिया है। कहते हैं- गुलाब पर कांटे आते हैं उसे बचाने के लिए और जिंदगी में दुख-दर्द आते हैं उसे समझाने के लिए। मानव का आत्मविश्वास के साथ सत्पथ पर चलने का संकल्प बल जाग गया तो सारी सफलताएं पांव पसारने लगेंगी। विश्वव्यापी प्रतिष्ठा आरती उतारने लगेगी तथा प्रतिकूल परिस्थितियां अनुकूलता में बदलने लगेंगी।

संघर्ष जीवन की एक कसौटी है जो अंत में विजय का द्वार खोलती है और समस्या का समाधान करती है। समस्या की मिट्टी में समाधान का अंकुर फूटता है। जागृत व्यक्ति हर समस्या का निदान ढूंढ लेता है। उसके आगे अपने घुटने नहीं टेकता है जबकि सामान्य व्यक्ति स्वयं को खोज पाने में कठिनाई अवश्य महसूस करता है। वास्तव में संघर्ष तो वह चुम्बक है जो व्यक्ति को लोहे से स्पर्श करवाकर सोने में परिवर्तित कर देता है। संघर्ष का जीवन जीना है तो भूल को भूलना सीखना होगा, अगर व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता तो मनोचिकित्सकों का मानना है कि कुछ विषम घटनाएं व्यक्ति के जीवन व स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं। उन परिस्थितियों को याद करके व्यक्ति घृणा, प्रतिशोध और क्रोध व चिंता के आचरण से भर जाता है। वह इस चिंतन से स्वयं को अंधकार के गर्त में धकेल लेता है। प्रतिशोध के कटु परिणाम ही आते हैं। अतः क्षमा सहज-सरल जीवनशैली का मूल मंत्र है। बुराई का स्मरण बुरा है उसे भुलाना महानता व सर्वोच्चता है।

जीवन में परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। अगर एक जैसी परिस्थितियां बार-बार हो रही हों तो कभी यह नहीं समझना चाहिए कि अब जीवन में सब कुछ समाप्त हो गया है, मेरे लिए कुछ नहीं बचा है। संघर्षशील व्यक्ति को एक बार पुनः उसी जोश व उत्साह के साथ नये सिरे से प्रयत्न में जुट जाना चाहिए। प्रयत्न सफलता की कुंजी होती है।
संघर्ष काल में यह बात हमेशा ध्यान में रहनी चाहिए कि व्यक्ति के स्वयं के हाथ कुछ नहीं है, व्यक्ति पुरुषार्थ कर सकता है परमार्थ का फल समय से पूर्व प्राप्त नहीं कर सकता। कहते हैं- समय से पहले और मुकद्दर से ज्यादा न किसी को मिला है और न किसी को मिलेगा। उसके लिए इंतजार ही सबसे बड़ा सहयोग है। इस सोच से ही व्यक्ति प्रतिकूलताओं में भी अनुकूलता की सौरभ भर सकता है। जीवन का विकास कर सकता है। सफलता और संघर्ष साथ-साथ चलते हैं। चुनौतियां केवल बुलंदियों को छूने की नहीं होती, खुद को वहां बनाए रखने की भी होती है। ठीक है कि एक काम करते-करते हम उसमें कुशल हो जाते हैं। उसे करना आसान हो जाता है। पर वही करते रह जाना, हमें अपने ही बनाए सुविधा के घेरे में कैद कर लेता है। रोम के महान दार्शनिक सेनेका कहते हैं, ‘कठिन रास्ते भी हमें ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। मैरी जैक्श कहती हैं, ‘अनिश्चितताएं हमारी शत्रु नहीं हैं। कुछ स्थायी नहीं होना बताता है कि मैं और आप कोई भी जीवन की असीमित संभावनाओं को जान नहीं सकते। जरूरत है तो बस विश्वास की।’ कभी आप अनिश्चितताओं की तरफ बढ़ते हैं, तो कभी वे आपको ढूंढ लेती है। यही जीवन है।

हर रात के बाद सबेरा आता ही है और यह भी सत्य है कि रात जितनी काली और भयावह होगी, सुबह उतनी ही प्रकाशमान तथा सुहानी होगी। गर्म हवाओं के चलने से ही जल वाष्प बनकर मेघ बनता है और फिर जीवनदायिनी वर्षा के रूप में बरसता है। जीवन में आये दुख, चिंता, तनाव तथा समस्या ही मनुष्य को निरंतर कर्मशील रखती है। अतः अपना दृष्टिकोण तथा चिंतन बदलकर समस्याओं को देखा जाए तो हर संकट सफलता की ओर ले जाने वाला बन जायेगा। वस्तुतः ‘विपत्ति एक कसौटी है जिस पर कसकर मनुष्य का व्यक्तित्व और चरित्र जांचा-परखा जाता है।’ आपका हर दिन बीते दिन से अलग है। इसे स्वीकारना ही जीवन को गले लगाना है।

Lalit Garg

 

(ललित गर्ग, 9811051133)

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