नई दिल्ली। श्री हरि विष्णु की पूजा करना हमेशा ही फलदायी होता है। लेकिन अगर ये पूजा पौष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को की जाती है तो उसके सफला एकादशी कहा जाता है। कहा जाता है कि जैसे नागों में शेष नाग, पक्षियों में गरुड़ , यज्ञों में अश्वमेघ , नदियों में गंगोत्री , देवकाओं में विष्णु उसी तरह से सभी व्रतों में एकादशी व्रत को सबसे बड़ा व्रत माना गया है। शास्त्रों के अनुसार 5 हजार साल की तपस्या का फल केवल एकादशी व्रत से ही मिलता है।
जानिए कैसे शुरु हुआ सफला एकादशी व्रत :-
चंपावती नामक नगर में महिष्मत नामक एक राजा था जिनके बड़े बेटे का नाम लुम्पक था। वह व्यवहार से बहुत ही खराब था और उसका ज्यादातर समय लोगों की बुराई करने में जाता था। उसकी करतूतों को देखकर राजा ने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। इसके बाद जंगल में जाकर वो राहगीरों से लूटपाट करने लगा और मांस का सेवन करना शुरु कर दिया। उस वन में पीपल का पेड़ था जिसकी सब लोग पूजा करते थे और वो उस पेड़ के नीचे भी कुछ समय तक रहा।
एक दिन अचानक उसकी तबियत खराब हो गई और जैसे तैसे उठकर मन ही मन कुछ फल विष्णु भगवान को अर्पित कर खा लिए। जिसके बाद वो आराम से सो गया। जिस दिन लुम्पक के साथ घटना घटी उस दिन सफला एकादशी थी। निरहार व्रत रखने और जागरण से भगवान प्रसन्न हो गए। आकाशवाणी करके कहा कि हे राजकुमार इस एकादशी व्रत के प्रभाव से आपको राज्य प्राप्त होगा और ऐसा ही हुआ। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से मानव इस लोक में यश तथा परलोक में मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।