मध्यप्रदेशः साल 2005 में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने वंदे मातरम गाने की परंपरा शुरू की थी। सरकारी कर्मचारी महीने के पहले कार्यदिवस पर राष्ट्रीय गीत गाया करते थे। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय गीत गाने की परंपरा को खत्म करने का आदेश दिया। इसको लेकर भाजपा ने कड़ी आपत्ति जताई। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां तक कहा कि वह इस मुद्दे को लेकर आंदोलन करेंगे।
इसे भी पढ़ें-खाद, बीज, कीटनाशक विक्रेता संघ ने मुख्यमंत्री का स्वागत किया
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी राहुल गांधी से पूछा कि क्या यह उनका आदेश है। विरोध के शुरों को तेज होता देख कमलनाथ सरकार ने इस आदेश वापस ले लिया है। सरकार का कहना है कि अब केवल सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि आम जनता भी वंदे मातरम गाएगी। इसके लिए पुलिस बैंड का मार्च निकाला जाएगा। जिसमें आगे बैंड, पीछे कर्मचारी और सबसे पीछे आम जन शामिल होंगे। कार्यक्रम महीने के पहले कार्यदिवस पर आयोजित किया जाएगा।
गौरतलब है कि वंदे मातरम को लेकर विवाद की शुरुआत नए साल पर हुई। जब कमलनाथ ने हर महीने की एक तारीख को मंत्रालय में गाए जाने वाले वंदे मातरम को बंद करने का निर्णय लिया। इस परंपरा के तहत मंत्रालय के सभी कर्मचारी महीने की पहली तारीख को परिसर में एक साथ मिलकर राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ गाया करते थे। इससे पहले भी वंदे मातरम को लेकर राजनीति की जाती रही है।
कमलनाथ के वंदे मातरम खत्म के आदेश के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज ने एलान किया था कि भाजपा के सारे विधायक सचिवालय में वंदे मातरम गाएंगे। चौहान ने कहा था कि हमारे सभी 109 विधायक 7 जनवरी 2019 को मध्यप्रदेश सचिवालय में वंदे मातरम गाएंगे। कमलनाथा सरकार के फैसले के विरोध में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने सचिवालय के बाहर प्रदर्शन भी किया था। बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने ट्वीटमें कहा था कि राष्ट्र गीत गाए जाने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग की है। उन्होंने कहा कि यह विभाग सीएम के पास है।