भोपाल। देश में कम उम्र में ही लोगों में घुटनों की बीमारियां घर करने लगी हैं। घुटनों के ऑपरेशन (नी रिप्लेसमेंट) आम बात हो चले हैं। कई वर्षो से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों की हड्डी संबंधी बीमारियों का इलाज करते आ रहे डॉ. शीतल कुमार गुप्ता का अनुभव है कि जीवनशैली और खान-पान के कारण ही घुटनों के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। डॉ. गुप्ता ने यहां बुधवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि घुटनों की बीमारी मुख्य तौर पर शहरी लोगों की बीमारी बन गई है, क्योंकि शहरी इलाकों के लोगों का खान-पान और जीवनशैली ऐसी हो गई है कि यह बीमारी उन्हें अपनी जद में ले लेती है। ग्रामीण इलाकों में रहने वालों को यह बीमारी आसानी से अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाती है।
डॉ. गुप्ता ने कहा, “घुटने के मरीजों में सर्वाधिक संख्या 40-45 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं और 50-55 वर्ष आयु वर्ग के पुरुषों की है। घुटनों की बीमारी उन लोगों को ज्यादा होती है, जो जमीन पर ज्यादा बैठते हैं, सीढ़ियों से ज्यादा उतरना-चढ़ना करते हैं। इस बीमारी से बचना है तो लोगों को व्यायाम का सहारा लेना होगा। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर रोज कई किलोमीटर पैदल चलते हैं और शारीरिक श्रम करते हैं, जिसके कारण उन्हें घुटने की बीमारी अथवा गठिया नहीं हो पाता है।” भारतीय खेल प्राधिकरण के फिजियो कंसल्टेंट रह चुके डॉ. गुप्ता देश के विभिन्न खेलों के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों की शल्य चिकित्सा करने के साथ ही उन्हें परामर्श भी दे चुके हैं।
उन्होंने आगे कहा कि घुटनों की एक बार शल्य क्रिया आसान है, मगर उम्र बढ़ने के साथ दूसरी बार शल्य क्रिया चुनौतीपूर्ण हो जाती है। डॉ. गुप्ता ने पिछले दिनों ज्यादा उम्र के दो लोगों के घुटनों की दोबारा शल्यक्रिया मेटाफीशियल तकनीक के जरिए की है। इनमें 86 वर्ष की लाही सूर्यवंशी भी एक है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि यह ऐसी तकनीक है, जिसमें घिस चुकी हड्डियों में वृद्घि की जाती है। परिणामस्वरूप लोग बगैर दर्द व परेशानी के एक बार फिर आसानी से चलने लगते हैं।