नई दिल्ली। हमारे देश के वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोग के जरिए इस बात को सही साबित कर दिया गंगा के पानी में कुछ विशेष शक्ति है जिसे भारतीय ब्रह्म द्रव्य या दिव्य अमृत कहते हैं। चंडीगढ़ के माइक्रोबियल टेक्नोजी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने अपनी रिसर्च के दौरान पाया कि गंगा के पानी में कुछ विशेष प्रकार के तत्व है। इन तत्वों को बैक्टीरियोफेजस कहा गया है जो कि इसके पानी को लंबे समय तक शुद्द बनाए रखते हैं। बैक्टीरियोफेजस एक तरह का वाइरस होता है जो कि पानी में मौजूद कीटाणुओं को खाता है और इसी वजह से गंगा का पानी खुद ही साफ हो जाता है।
चंडीगढ़ के सीएसआईआर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सीनियर प्रिंसिपल वैज्ञानिक डॉ शानमुगम माईलराज भारतीय वैज्ञानिक जॉनर के बारे में बात करते हुए कहा कि सेडीमैनटिरी वाइरोम्स विश्लेषण के दौरान ये पाया गया कि गंगा के पानी में न केवल हाउस नोवल वाइरोम्स बल्कि इसमें अनएक्सप्लोर्ड डबल स्टैण्डर्ड डीएनए वायरस भी पाया जाता है। इसके साथ ही डॉ माईलराज ने बताया कि इस वायरस की वजह से अपने आप ही साफ हो जाता है लेकिन इससे पहले ये अभी तक रिपोर्ट नहीं किया गया था।
इन बैक्टीरियोफेजस का उपयोग मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट के लिए किया जाता है। डॉ माईलराज ने बताया कि उनकी टीम ने 20 से 25 तरह के दिलचस्प वाइरस की खोज की है जिनका उपयोग टीबी रोग (ट्यूक्यूलोसिस), टाइफाइड, निमोनिया, कालरा, पेचिस, डायरिया और मेनिंगटिस आदि कई तरह के रोगों में किया जाता है। इसके साथ ही डॉ माईलराज ने बताया कि हमारी अलग-अलग तरह की खोज से अलग-अलग प्रकार के बैक्टीरियोफेस की विविधता का पता चला जिनमें विशिष्ट तरह की जीवाणुनाशक विशेषताएं हैं। हाल ही में हुई रिसर्च से पता चला कि पानी में कई तरह के बैक्टीरिया सम्मिलित होते हैं जैसे कि औसिएलटरीफाईक्यूडी, फ्लैवो बैक्टीरिया, स्फिनगो बैक्टीरिया, ए-प्रोटियो बैक्टीरिया, बी- प्रोटियो बैक्टीरिया, वाई- प्रोटियो बैक्टीरिया, नॉस्टोबैक्टीरिया, क्स्टीरिडा, एक्टीनोबैक्टीरिया और डेल्टाप्रोबैक्टीरिया शामिल हैं।
आईएमटीईसीएच टीम ने हरिद्वार से बनारस तक फैली गंगा के अत्यधिक भाग से बरसात के पहले और बाद के पानी के नमूने ले लिए थे। इसके बाद उन्होंने एक तुलनात्मक अध्ययन के लिए यमुना और नर्मदा नदी के पानी के नमूने भी लिए जिससे कि ये पता चल सके कि गंगा का पानी बाकी नदियों के पानी की अपेक्षा अलग कैसे है। इस रिसर्च का अध्ययन संघीय जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय उमा भारती की अध्यक्षता में साल 2014 नवंबर में किया गया। आईएमटीईसीएच टीम के अतिरिक्त नागपुर के नेशनल पर्यावरण इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट टॉक्सीकोलॉजी रिसर्च और सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट व एरोमेटिक प्लांट लखनऊ से जुड़ी सभी परियोजनाओं का हिस्सा है।
वर्तमान अध्ययन के साथ-साथ इन सभी इंस्टीट्यूट की एकत्रित रिपोर्ट को सरकार के समक्ष साल 2016 में पेश किया जाएगा। अतीत में कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने गंगा के पानी में कुछ विशेष तत्व पाए थे लेकिन आईएमटीईसीएच के माइक्रोबायोलॉजिस्ट को इन सूक्ष्म जीवों को पहचानने का श्रेय जाता है। गंगा नदी का भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान है जिसे देवी गंगा का धरती पर पवित्र अवतार माना गया है। इसके साथ ही भारतीयों का विश्वास है कि गंगा के पानी में डुबकी लगाने से उनको मोक्ष मिल जाता है जिसके कि उनको जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
(एन बी नायर)