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कैसे गिरा था अयोध्या का विवादित ढांचा…

ramjanabhumi कैसे गिरा था अयोध्या का विवादित ढांचा...

नई दिल्ली। भीनी-भीनी ठंड ने दस्तक दी थी। सूबे भाजपा की सरकार थी पिछले 6 माह से रामजन्मभूमि न्यास और विश्व हिन्दू परिषद कारसेवा के नाम पर विवादित परिसर के बाहर लगातार कारसेवा कर रहा था। रोज लाखों रामभक्त कारसेवक अयोध्या आ रहे थे। पतित पावनी सरयू के जल से 6 दिसम्बर को कारसेवा का श्री गणेश होना था। विहिप से लेकर

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भाजपा के शीर्ष नेता वहां मौजूद थे। मंच पर भाषणों का दौर चल रहा था। लेकिन अचानक ही ये दौर उन्माद में बदल गया। फिर तो जो हुआ वो पूरे विश्व के सामने था। देश के लोकतंत्र के इतिहास का सबसे बुरा दिन था। रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के उस विवादित ढांचे को उस उन्मादी भीड़ ने गिरा दिया था।

क्या हुआ था 6 दिसम्बर 1992 को
रामलला हम आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे के नारों के साथ उन्माद से भरे कारसेवकों के जत्थे ने एकाएक ऐसा उन्माद दिखाया कि सारे सुरक्षा के घेरे टूट गये। लोग देखते ही रह गये । चंद मिनट कारसेवक विवादित ढांचे के ऊपर थे। फिर वो मंजर आया जिसे देख सभी ने केवल एक लोकतांत्रिक देश को कंलकित होते देखा। न्यायालय के आदेशों का खुला उल्लघन होते देखा। सदियों से विवादित इस ढांचे को धवस्त कर दिया गया।

क्या क्या कब घटा 6 दिसम्बर 1992 को

सुबह 11 बजे
6 दिसम्बर की सुबह ठीक 11 बजे का वक्त था। मंच पर वीएचपी नेता अशोक सिंघल,मुरली मनोहर जोशी,लाल कृष्ण आडवाणी समेत कई विहिप और भाजपा के कई बड़े नेता मौजूद थे। सुबह 11 बजे जैसे ही उन्माद से भरे कारसेवकों ने विवादित ढांचे की सरक्षा में लगे घेरे को तोड़न शुरू कि उसी के साथ वीएचपी नेता अशोक सिंघल कारसेवकों के बीच आ गये उन्हें समझाने की कोशिश करते दिखने लगे। इसके साथ ही मनोहर जोशी,लाल कृष्ण आडवाणी भी वहां के उन्मादी भीड़ को समझाने पर जुट गये लेकिन भीड़ का उन्माद था कि सुनने को तैयार नहीं था। आखिरकार कारसेवकों ने विवादित ढांचे के दरवाजे पर प्रहार करना शुरू कर दिया। भीड़ का उन्माद ऐसा था कि पुलिस भी कुछ नहीं कर सकी उसे पीछे ही हटना पड़ा। इस दौरान सुरक्षा से जुड़े अधिकारी केवल तमाशा ही देखते रहे।

सुबह 11:30 बजे
अभी वहां मौजूद कारसेवकों और पुलिस के कुछ जवानों में धक्कामुक्की का खेल चल ही रहा था कि अचानक सर पर केसरिया साफा बंधे कुछ बलिदानी कारसेवकों का एक बड़ा जत्था वहां पहुंच गया। उसने एक योजना के तहत कारसेवकों को समझाना शुरू किया। थोड़ी देर में विवादित ढांचे की अन्दर की सुरक्षा में तैनात पुलिस की टुकड़ी बाहर निकल आई। ना कोई विरोध का ना रोकने की कोई कोशिश पुलिस और सुरक्षा से जुड़े बड़े अधिकारी केवल दूर से मचान पर बैठे देख रहे थे। पुलिस के वहां से हटने के बाद बलिदानी कारसेवकों की आगुवाई में एक बड़ा आक्रमण उस ढांचे पर किया गया।

दोपहर 12 बजे
ठीक 12 बजे पूरे इलाके में एक शंखनाद की गूंज के साथ केवल रामलला हम आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे के नारे की गूंज सुनाई दे रही थी। फिर उन्मादी कारसेवक विवादित ढांचे की दिवार पर चढ़ने लगे। बाड़े के बाहर का गेट तोड़ दिया गया था। अब विवादित परिसर पूरी तरह से कारसेवकों के कब्जे में था। हांलाकि उस दौरान तत्कालीन एसएसपी डीबी राय पुलिसवालों को मुकाबला करने के लिए कहा रहे थे, लेकिन पुलिस वालों ने अपने हथियार अपने कप्तान के सामने डाल दिए थे। कारसेवक लगातारविवादित ढांचे को गिराने में जुट गये।

ठीक 4 बजे
लगातार प्रशासन और सुरक्षा के दावों को चिढ़ाते हुए एक ऐतिहासिक ढांचे को गिराने में उन्माद से भरे कारसेवकों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और फिर ठीक 5 बजे तक पूरा विवादित ढांचा गिरा दिया गया। देश के बड़े राजनेताओं और सुरक्षा के बड़े अधिकारियों के सामने न्याय पालिका के आदेश की धज्जियां उडाई गईं। लोग खामोश रहे आखिरकार वो विवादित परिसर अब एक मैदान में बदल चुका था। पूरे इलाके में कानून-व्यवस्था का माखौल उड़ाया गया था। पुलिस तंत्र विफल रहा था।

piyush-shukla(अजस्रपीयूष)

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