नई दिल्ली। भगवान श्री कृष्ण वासुदेव एवं देवकी के पुत्र थे लेकिन जन्म के समय से ही मृत्यु का खतरा देखते हुए वासुदेव ने गोपाल कृष्ण को नंद के यहां भेज दिया था। ऐसा कहा जाता है कि देवकी ने कारागार में ही भगवान कृष्ण को जन्म दिया था जिसके बाद वासुदेव ने रात के अंधेरे में ही अपने नवजात पुत्र को देवकी के भाई कंस से बचाने के चलते नंद के घर यमुना पार पहुंचा दिया था।
भगवान कृष्ण और बलराम ने कंस के पहलवानों को किया धराशाही:-
शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण और बलराम को युद्धभूमि आने पर चाणूर और मुष्टिक ने उन्हें मल्लयूद्ध के लिए ललकारा था। जिसके बाद दोनों का मुष्टिक से युद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने चाणूर की दोनों भुजाएं पकड़ ली और उसे घुमाते हुए जमीन पर फेंक दिया जिसके उसने अपने प्राण त्याग दिए। ऐसे ही देखते ही देखते श्री कृष्ण और बलराम ने कंस के पांचों प्रमुख पहलवानों को एक-एक कर धराशाही कर दिया। दोनों भाईयों द्वारा किए गए इस अद्भुत नजारे को जिसने भी देखा वो अपने आप को धन्य महसूस करने लगा।
और ऐसे हुई कंस को मृत्यु की प्राप्ति:-
अपने पांचों पहलवानों को धराशाही देखकर कंस को काफी दुख हुआ। जिसके बाद उसने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि इन दोनों भाईयों को महल से बाहर निकाल दो इसके साथ ही गोपों का सारा धन छीनकर नंद को बंदी बना लो और वासुदेव-देवकी को मृत्यु के हवाले कर दो। इसके अलावा कंस ने आदेश देते हुए कहा चंकू मेरे पिता श्री उग्रसेन भी मेरे शत्रुओं के साथ है इसके उन्हें भी मृत्यु के घाट उतार दो। काफी समय से कंस की बात सुनकर भगवान कृष्ण मंच की ओर उछले। कृष्ण को अपने सामने देखकर कंस काफी घबरा गया। जिसके बाद उसने चालाकी दिखाते हुए तलवार बाहर निकाली लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उसे पकड़कर झटके से जमीन पर पटक दिया और उसके ऊपर कूद गए। उनके कूदते ही कंस की मृत्यु हो गई और एक दिव्य तेज निकलकर भगवान श्री कृष्ण में समा गया।