नईदिल्ली। पूरा देश आज रूपये को लेकर हाहाकार कर रहा है। देश में बीते 8 नवम्बर को पीएम मोदी की 1000 और 500 के नोटों को बंद करने की घोषणा के बाद क्या नेता क्या जनता हर तरफ हाहाकर सा मच गया। लोगों का हजूम पूरे दिन बैंकों के चक्कर काटने लगा खबरिया दुनियां में भी ये खबर दिन खबर दिखाई जाने लगी। अलग-अलग तरीकों से इस पर समीक्षा और चर्चाओं का दौर चलने लगा। किसी ने कहा कालेधन को रोकने के लिए प्रयास बेहतर है। तो किसी ने आम आदमी की परेशानी का हवाला दे सरकार की नीति को गलत बताया। लेकिन इस सब के दौरान हम सब भूल गये कि जिस भारतीय मुद्रा के लिए हम लड़ रहे हैं। आखिर उसका क्या इतिहास है। लेकिन आज वक्त की जरूर है की आप जाने भारतीय मुद्रा के प्रचलन और चलन के रोचक इतिहास को।
प्राचीन काल से है चलन
भारतीय मुद्रा का चलन और प्रचलन तो देश में प्राचीन काल से रहा है। भारत बीते काल में व्यापार का बड़ा केन्द्र हुआ करता था सिंधु सभ्यता के दौरान यहां पर खुदाई में कई प्राचीन भारतीय मुद्राएं मिली हैं। साथ ही मुद्रा के मुद्रण के लिए टकसाल का होना भी पाया गया है। यानी हम भारतीय प्राचीन काल से ही मुद्रा की भाषा से पूरी तरह से परिचित रहे हैं। गुप्त काल में भी टकसालें थी कहा जाता है उस काल में मौजूद शिलालेखों में इस बात का कहीं कहीं उल्लेख आया है कि चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण के समय भारतीय टकसाल ने चंद्रगुप्त को लेकर मुद्रा का मुद्रम किया था । इस बात का जिक्र चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा के विवरण में उल्लेख किया है। यानी भारतीय समुदाय प्राचीन काल से मुद्रा के मुद्रण और प्रचलन और इसके बंद होने से भली भांति परिचित था। क्योंकि भारतीय शासकों के आते जाते क्रमानुसार यहां मुद्रा का चलन-प्रचलन अलग-अलग ढंग से होता रहा है। हांलाकि इस काल में ये सवर्ण और चांदी जैसी बहुमूल्य धातुओं के रूप में प्रचलित रही हैं कभी तांबे के तौर पर भी उपयोग किया गया है।
मध्यकाल में भारतीय मुद्रा
गुलामवंश से भारत में एक नये युग का सूत्रपात हुआ था। उस समय भी प्रचलित भारतीय मुद्राओं में परिवर्तन किया गया था । रजिया सुल्तान के समय इतिहास के पन्नों में ये उल्लेख मिला हैं कि सत्ता में आते ही मुद्रा के मुद्रण में उसे अंकित किया गया था। इसी काल में एक उदाहरण मुद्रा के बंद होने और बदलने के भी तुगलक के शासन काल में मिलता है। जब सोने और चांदी के सिक्कों के बदले तांबे के सिक्के उसी मूल्य के चलाये थे लेकिन इसका परिणाम तुगलक को उटा पड़ा था जनता ने तांबे के सिक्के के बदले सोने के सिक्के राजकोश से बदल लिए थे। यानी भारतीय मुद्रा का चलन-प्रचलन और नवीनीकरण लगातार इस काल में भी जारी रहा है। मुगल काल में इसमें कई तरह के परिवर्तन कर टकसाल को एक सुसंगठित रूप प्रदान भी किया गया था।
ब्रिटिश काल में भी भारतीय मुद्रा
ब्रिटिश काल में बहुमूल्य धातु सोने और चांदी के सिक्कों से व्यापार का काम जारी रहा है। आज जनता छोटे सिक्कों से जैसे तांबे और कांसे के सिक्कों से अपना काम चलाती रही है। बड़े सिक्कों का मूल्य धातु के अनुसार लगाया जाता रहा है। उस समय अलग-अलग परिवेश में टकसालों से सिक्कों की ढलाई की जाती रही है। जिसका मूल्य धातु के अनुसार हर जगह तय था। लेकिन 1857 की क्रांति के बाद जब ईस्ट इंडिया कंपनी की जगह ब्रिटिश हुकूमत का शासन हुआ तो वहां के किंग जार्ज प्रथम और द्वितीय के साथ महारानी के रूप में वहां प्रचलित मुद्रा का भारतीय परिवेश में चलन आया। जिसके बाद धीरे धीरे ये चलन कागजीय मुद्रा के रूप में आगे के क्रम में आता गया।
वर्तमान में भारतीय मुद्रा का चलन
भारतीय रिजर्व बैंक का गठन 1935 में हुआ था। उस समय वह अंग्रेजी हुकूमत के अनुसार मुद्रा के मुद्रण और प्रचलन का कार्यो करता था । 1947 में भारत के आजाद होने पर 1951 से भारतीय रिजर्व बैक ने भारतीय मुद्रा का मुद्रण का काम शुरू किया 1971 में यह ब्रिटिश मुद्रण के संबंध को समाप्त कर इसकी तुलना डालर से करने का प्राविधान जोड़ा गया। सबसे पहले 5 रूपये के नोट के साथ 10000 के नोटों को भी छापा गया था लेकिन जल्द ही बड़े नोट को भारतीय रिजर्व बैंक ने वापस ले लिया था। जिसके बाद अब मोदी सरकार ने बडे नोट को छापा है। लगातार सरकारों के आने और मुद्रण और प्रचलन को लेकर भारतीय मुद्रा में समय-समय पर परिवर्तन किए जाने लगे हैं। कई नोटों का चलन बंद हुआ तो नय़े नोट बाजार में आये लेकिन भारतीय बाजार लगातार हर बदलाव को स्वीकार करता गया।
(अजस्र पीयूष)