नई दिल्ली। बंकिमचंद्र चटोपाध्याय बंगाल के पहले उपन्यासकार और कवि थे। बंकिमचन्द्र ने ‘वन्दे मातरम्’ की रचना की थी और इसी के साथ ही वो स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए। चटोपाध्याय से पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसंद करते थे, लेकिन बंकिमचंद्र ने बंगला में लिखाना शुरु किया और बंगला के पहले साहित्यकार बने। चटोपाध्याय को भारत का ‘एलेक्जेंडर ड्यूमा’ माना जाता है।
जन्म
बंगला भाषा के प्रसिद्ध लेखक बंकिमचंद्र चटोपाध्याय का जन्म 26 जून 1838 को बंगाल के 24 परगना जिले के कांठला पाड़ा नाम के गांव में हुआ था। चटोपाध्याय का परिवार बंगाल का एक स्मपन्न परिवार था। वे एतिहासिक उपन्यास लिखने में काफी माहिर थे और उनके लेखन से सिर्फ बंगला ही नही बल्कि हिंदी साहित्य भी सम्रद्ध हुआ है।
शिक्षा
चटोपाध्याय की शिक्षा बंगला के साथ-साथ अंग्रेजी और हिन्दी में भी हुई थी। अपनी पढ़ाई के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी की लेकिन देश प्रेम और अपनी भाषा के लिए प्यार उनमें कूट-कूट के भरा था। इसी कारण एक बार बंकिमचंद्र ने उनके मित्र का भेजा गया लेटर वैपस कर दिया था क्योंकि वो खत अंग्रेजी भाषा में था। साथ ही इस पर बंकिम ने कहा की अंग्रेजी ना तो तुम्हारी राष्ट्रभाषा है ना ही हमारी।
साहित्यक क्षेत्र में प्रवेश
बंकिम ने अपनी कुछ कविताओं से इस क्षेत्र में प्रवेश किया। ये वो समय था जब बंगला में ज्यादा रचनाएं नहीं थी ना ही कोई उपन्यास आदि थे। बंकिन ने कविताओं से शुरुआत करने के बाद अपना एक उपन्यास लिखा जिसका नाम ‘दुर्गेश नंदिनी’ है। जब उन्होंने ये पहला उपन्यास लिखा तब उनकी उम्र 27 वर्ष थी। ये एक एतिहासिक उपन्यास बन गया और इसी उपन्यास से उनकी साहित्य के क्षेत्र में जगह बन गई। इस उपन्यास के बाद बंकिम ने ‘बंग दर्शन’ के नाम से साहित्यिक पत्र का प्रकाशन शुरु किया।
बंकिंम के प्रसिद्ध उपन्यास
यूं तो बाद में बंकिम के ‘कपाल कुण्डली’, ‘मृणालिनी’, ‘विषवृक्ष’, ‘कृष्णकांत का वसीयत नामा’, ‘रजनी’ आदि कई उपन्यास प्रकाशित हुए लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ था। इसी उपन्यास में सबसे पहले राष्ट्र गीत ‘वन्दे मातरम्’ गीत प्रकाशित हुआ था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना को जगाने में अहम भूमिका निभाई। बंकिम के गीत ‘वन्दे मातरम्’ ने देश में स्वतंत्रता की लड़ाई को आगे बढ़ाने में बल दिया था। बंगला के महान साहित्यकार बंकिंमचंद्र चटोपाध्याय का निधन 8 अप्रैल, 1894 को हुआ था।