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1971 विजय दिवसः 1 भारतीय जांबाज ने 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को किया था आत्मसमर्पण के लिए मजबूर

1971 विजय दिवसः 1 भारतीय जांबाज ने 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को किया था आत्मसमर्पण के लिए मजबूर

1971 भारत-पाक युद्धः कश्मीर में कब्जा करने आयी पाकिस्तानी सेना को आज के ही दिन हमारे एक जांबाज ने परास्त कर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था। मालूम हो कि 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेकते हुए आत्मसमर्पण किया था। यह ऐसा युद्ध था जिसने अपने अंतिम परिणाम के तौर पर बांग्लादेश को पाक से अलग देश बना दिया था। गौरतलब है कि इस युद्ध में सेकेण्ड लेफ्टिनेन्ट अरुण खेत्रपाल ने उच्चतम वीरता और साहस का परिचय दिया था।

 

 

1971 विजय दिवसः 1 भारतीय जांबाज ने 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को किया था आत्मसमर्पण के लिए मजबूर
1971 विजय दिवसः 1 भारतीय जांबाज ने 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को किया था आत्मसमर्पण के लिए मजबूर

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बता दें कि पाकिस्तान की योजना कश्मीर पर कब्जा करने की थी। इसी उद्देश्य से पाक ने बड़ी संख्या में सियालकोट सेक्टर में अपनी फौज को तैनात कर दिया।शकरगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी (सांबा) से टैंकों के द्वारा हमला बोल कर जम्मू-कश्मीर को पंजाब से अलग-थलग करना चाहता था। 15 दिसंबर को अरुण खेत्रपाल एक आर्म्ड स्क्वार्डन की कमान संभाल रहे थे। इसी दौरान एक-दूसरे स्क्वार्डन को दुश्मन की सेना का सामना करने के लिए सहायता की आवश्यकता पड़ी और उन्हें मदद के लिए ब्रिगेड मुख्यालय जरपाल पहुंचने की सूचना मिली। ये संदेश खेत्रपाल को तब मिला जब उनके जाने के लिए स्थिति बेहद मुश्किल और खतरों की थी।

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गौरतलब है कि अरुण खेत्रपाल को जहां से जाना था उस रास्ते में लैंडमाइंस बिछी थी, जिनको हटाने के लिए कुछ और दिन लगने थे। दुश्मन की तरफ से गोलाबारी भी लगातार की जा रही थी। ऐसे सभी खतरों की चिंता किए बिना वे पूना हॉर्स की स्क्वार्डन लेकर 16 दिसंबर की सुबह जरपाल पहुंचे और दुश्मन के कई टैंकों को तबाह कर उनको खदेड़ दिया।

खेत्रपाल सेंचुरियन टैंक पर सवार थे। दो और अफसर भी दस्ते में शामिल थे जो दूसरे टैंकों पर थे। कुछ घंटों के बाद दुश्मन ने बड़ी संख्या में पैटन टैंक के डिवीजन के रूप में दूसरा आक्रमण किया। खेत्रपाल ने दुश्मन के इस वॉर को वीरता और होशियारी से अपने कुछ ही टैंकों के साथ पूरे दिन निष्फल किया। खेत्रपाल ने अपनी युद्ध कुशलता के दमपर दुश्मन के दस टैंक बर्बाद कर दिए। इसी हताशा ने दुश्मन को पराजय किया। पाकिस्तान के 95 हजार सैनिकों ने भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया।

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ऐसे ही भारतीय सेना के जांबाजों ने पाकिस्तान को अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है। 1971 की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले मेजर नारायण सिंह (वीर चक्र) ने इस युद्ध में न सिर्फ अपने पराक्रम का परिचय दिया है बल्कि दुश्मन को धूल चटाते हुए हमेशा- हमेशा के लिए जो दर्द दिया शायद पाकिस्तान उसे कभी भूल पाए। प्रसिद्ध पाकिस्तानी जनरल मुकीम खान पुस्तक ‘पाकिस्तान क्राइसिस आफ लीडरशिप’ में शहीद नारायण सिंह के बारे में लिखा है कि हमारे ऊपर इस युद्ध में सबसे कड़ा और निर्णायक आक्रमण मेजर नारायण सिंह की कमान में 4 जाट द्वारा किया गया था।

मुकीम खान ने आगे लिखा कि शहीद मेजर नारायण ने हमारी 6 एफएफ की चौकियों पर अपनी बहादुरी और हिम्मत से कुछ ही सैनिकों के साथ अंदर घुस कर घातक हमला किया। और अंत में लड़ता हुआ शहीद हो गया। जनरल मुकीम खान ने पुस्तक में फाजिल्का की लड़ाई का जिक्र किया,जिसके बार में उन्होंने लिखा कि शहीद मेजर नारायण सिंह ने निशाने हैदर मेजर शब्बीर शरीफ जो उस समय 6 एफएफ की कमान संभाले थे। उनको पांच दिसंबर 1971 में गुत्थम गुत्था की लड़ाई में नारायण सिंह ने मार गिराया और उसी दौरान वह खुद शहीद हो गए।

महेश कुमार यादव

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